नन्हे दोस्तों को समर्पित मेरा ब्लॉग

अनुपम उपहार : रावेंद्रकुमार रवि

>> Friday, April 23, 2010

अनुपम उपहार










प्रत्येक
दृष्टि
-मिलन पर
तुम्हारे
द्वारा
दिया
गया
निश्छल
मुस्कान का
अनुपम
उपहार

मेरे
हृदयाकाश में
वैसे
ही
सजा
हुआ है,
जैसे
-
भोर
के
आँचल
में सजी
रवि
की
नव
रश्मियाँ!

रावेंद्रकुमार रवि

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अनुरोध : रावेंद्रकुमार रवि

>> Wednesday, April 14, 2010

अनुरोध










मेरा

हृदय-सुमन
पलकों में
सजा
सुमन
बन जाओ!

और

सुमन में
मेरे मन के
सुर का
गीत
सजाओ!

सुमन
मैं भी बन जाऊँगा,
तुम्हारा मीत कहाऊँगा!


रावेंद्रकुमार रवि

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कैसे भूल जाऊँ? : रावेंद्रकुमार रवि

>> Thursday, April 8, 2010

कैसे भूल जाऊँ?












नहीं भूल सकता -
केश-परिमल के
नीहार में
भ्रमर-सा
खो जाना!
झुकी पलकों की
छाँव में
पथिक-सा
सो जाना!

नहीं भूल पाता -
रूप-जलधि की
लहरों में
प्रणय-बिंबों-सा
रच जाना!
उड़ते आँचल की
गोदी में
मस्त पवन-सा
बस जाना!

कैसे भूल जाऊँ?
मन की
काव्य-पंक्तियों में
कवि-सा
रम जाना!
बदली-सी
अलकावलि में
रवि-सा
सज जाना!


रावेंद्रकुमार रवि

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तुमसे बिछुड़कर : रावेंद्रकुमार रवि

>> Thursday, April 1, 2010


तुमसे बिछुड़कर











कहते हैं


विश्व की समस्त ऊर्जा


संरक्षित है!



लेकिन


तुमसे बिछुड़कर


मुझे ऐसा लगा -



जैसे वो


मेरी


बोझिल पलकों में


समाने के बाद



आँखों से


आँसू के रूप में


शून्य बनकर


टपक पड़ी


और


नष्ट हो गई है!



रावेंद्रकुमार रवि

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