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कैसे भूल जाऊँ? : रावेंद्रकुमार रवि

>> Thursday, April 8, 2010

कैसे भूल जाऊँ?












नहीं भूल सकता -
केश-परिमल के
नीहार में
भ्रमर-सा
खो जाना!
झुकी पलकों की
छाँव में
पथिक-सा
सो जाना!

नहीं भूल पाता -
रूप-जलधि की
लहरों में
प्रणय-बिंबों-सा
रच जाना!
उड़ते आँचल की
गोदी में
मस्त पवन-सा
बस जाना!

कैसे भूल जाऊँ?
मन की
काव्य-पंक्तियों में
कवि-सा
रम जाना!
बदली-सी
अलकावलि में
रवि-सा
सज जाना!


रावेंद्रकुमार रवि

8 टिप्पणियाँ:

आदेश कुमार पंकज April 8, 2010 at 9:46 PM  

अति सुंदर, एक सार्थक पहल
रवि जी आपको बहुत - बहुत बधाई

दीनदयाल शर्मा April 8, 2010 at 11:01 PM  

कैसे भूल जाऊं ? जितनी सुन्दर कविता के शब्द... उतने ही सुन्दर भाव..और चित्र भी सोने पर सुहागा...वाह ! रवि भई. बधाई.

Udan Tashtari April 9, 2010 at 8:10 AM  

सुन्दर रचना!

संगीता स्वरुप ( गीत ) April 9, 2010 at 10:57 AM  

सुन्दर भावों और सुन्दर शब्दों से सजी खूबसूरत रचना ....बधाई

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' April 9, 2010 at 3:41 PM  

"नहीं भूल सकता
माँ के
आँचल में सिमटे दुलार को
पिता के
असीमित प्यार को
प्रियतमा की
बाहों के हार को
बहारो का
आना
और जाना
यही तो है
जीवन.."

रवि जी!
हम तो आपकी कविता को पढ़कर
अतीत की यादों में खो ही गये!

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" April 9, 2010 at 5:22 PM  

बहुत ही सुन्दर रचना है !

कविता रावत April 12, 2010 at 3:02 PM  

कैसे भूल जाऊँ?
मन की
काव्य-पंक्तियों में
कवि-सा
रम जाना!
बदली-सी
अलकावलि में
रवि-सा
सज जाना!
.... Man ke bhawon ke sundar abhivyakti.....
Saarthak rachna....

संजय भास्‍कर April 14, 2010 at 4:46 PM  

सुन्दर भावों और सुन्दर शब्दों से सजी खूबसूरत रचना ....बधाई

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