नन्हे दोस्तों को समर्पित मेरा ब्लॉग

हँसी का टुकड़ा : रावेंद्रकुमार रवि

>> Saturday, May 15, 2010

हँसी का टुकड़ा


नथनी की परछाईं पर, सो
रहा हँसी का टुकड़ा!
उसे सुनाकर ख़ुश है लोरी,
गोरी तेरा मुखड़ा!

लट ने चूमा, उँगली ने छू
धीरे से सहलाया!
फिर उसको ओंठों पर धरकर
मेरी ओर उड़ाया!
मेरे पास पहुँचकर उसने
दूर कर दिया दुखड़ा!
नथनी की परछाईं पर ... ... .

मैंने भी उसके सुर से सुर
लेकर गीत बनाया!
फिर उसको अपनी साँसों की
ख़ुशबू से महकाया!
महक-महककर चमक आ गई,
दमक उठा है मुखड़ा!
नथनी की परछाईं पर ... ... .

रावेंद्रकुमार रवि

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ले हाथों में हाथ : रावेंद्रकुमार रवि

>> Saturday, May 8, 2010

ले हाथों में हाथ

पका हुआ जब पेड़ से,
चुआ रसीला आम।
झट से मैंने लिख दिया,
उस पर अपना नाम।।

ख़ूब पसीना बह रहा,
बनकर सबका मित्र।
ख़ुशबू इसकी लग रही,
जैसे महके इत्र।।

पूरी दोपहरी रहे,
गरमी से हम पस्त।
शाम सुहानी हो गई,
हवा चली जब मस्त।।

मन करता है छाँव के,
सदा रहूँ मैं साथ।
ऐसे ही बैठा रहूँ,
ले हाथों में हाथ।।

रावेंद्रकुमार रवि

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मज़दूर को देखिए : रावेंद्रकुमार रवि

>> Saturday, May 1, 2010

मज़दूर को देखिए -

बीड़ी के धुएँ में
साँसों को छौंककर
डेढ़ हड्डी पीठ पर
एक कुंतल गेहूँ लादे
रोटी के
दो क़तरों के लिए
अपनी साँझ देखती
ज़िंदगी को
लावा उगलती सड़कों पर
मृत कुत्ते की तरह
दिन-भर घसीटता है
और जब मिलते हैं
रोटी बनाने को
चार पैसे
तो दर्द से चीखती
पेशियों को
सुलाने के लिए
उन्हें दारू में घोलकर
आँतें सींच लेता है
ताकि कल फिर ... ... .
--
कविता : रावेंद्रकुमार रवि
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चित्र : दिव्या शर्मा

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