नन्हे दोस्तों को समर्पित मेरा ब्लॉग

उसकी याद सजाने निकले : ग़ज़ल : रावेंद्रकुमार रवि

>> Wednesday, June 30, 2010

उसकी याद सजाने निकले


जब तुम हमें लुभाने निकले!
हम तुम पर मिट जाने निकले!

तुम पर अच्छी ग़ज़ल पढ़ी तो,
हम दिल से कुछ गाने निकले!

भूल सके ना अब तक जिसको,
फिर से उसे भुलाने निकले!

कल ही जिससे मुँह फेरा था,
उसको गले लगाने निकले!

जिस लौ में ना जले पतंगा,
उस लौ को जलवाने निकले!

"रवि" को जिसने याद किया है,
उसकी याद सजाने निकले!

रावेंद्रकुमार रवि

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बनना ही पड़ेगा : नई कविता : रावेंद्रकुमार रवि

>> Thursday, June 24, 2010

बनना ही पड़ेगा

करते ही एक क्लिक,
सुन लिए -
तुम्हारे मधुर बोल!
देख ली -
तुम्हारी मुस्कान की खिलन!
पढ़ लिए -
तुम्हारी आँखों के स्नेहिल भाव!
नहीं महसूस हो सकी -
तुम्हारी ऊष्मा!
मेरी सुगंध के लिए,
बनना ही पड़ेगा -
तुम्हें भ्रमर!


रावेंद्रकुमार रवि

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हमें नहीं पसंद है : लघुकथा : रावेंद्रकुमार रवि

>> Thursday, June 17, 2010

लघुकथा -

हमें नहीं पसंद है


‘‘भइ, हमें आपकी बेटी पसंद है । आप अपनी बेटी से पूछ लीजिए कि उसे भी हमारा बेटा पसंद है या नहीं !''

लड़के के पिता ने जब यह कहा, तो ‘उनकी' बेटी ने लजाकर नजरें झुका लीं ।

यह देखकर लड़के की माँ बोलीं - ‘‘ठीक है ! अब हम सगाई की रस्‍म पूरी करके ही जाएँगे । अगले महीने की कोई तारीख्‍़ा शादी के लिए भी निश्‍चित कर लेंगे ... ... ... बेटी ! अपना हाथ आगे बढ़ाओ ... ... ... लो बेटा ! यह अँगूठी बहू की उँगली में पहना दो ... ... ... ''

‘‘लेकिन ... ... ... '' - उन्‍होंने तुरंत उनको रोक दिया ।

‘‘अरे भइ, पहनाने दीजिए !'' - लड़के के पिता ने अनुरोध किया ।

लेकिन वे बोले - ‘‘देखिए भाई साहब ! हमारी एक ही लड़की है । पहले सारी बातें तो तय कर लीजिए । बाद में सगाई भी हो जाएगी और शादी भी ।''

‘‘क्‍या मतलब ?''

‘‘यही कि आप लोगों की माँग क्‍या है ? वह भी पहले ही बता दें, तो ज़्यादा अच्‍छा रहेगा ।''

यह सुनकर लड़के के पिता हँसने लगे । बोले - ‘‘भगवान का दिया सब कुछ है हमारे पास । हमें तो बस आपकी बेटी चाहिए । हमारी कोई माँग नहीं है और न ही हम कुछ लेंगे ... ... ... बेटा ! तुम अँगूठी पहनाओ ।''

‘‘लेकिन फिर भी, हमें कुछ सोचने का मौका तो दीजिए ।'' - यह कहकर उन्‍होंने लड़के को फिर रोक दिया ।

‘‘ठीक है भइ, सोच-समझकर ही बताइएगा ।'' - बाहर की ओर साँस छोड़ते हुए लड़के के पिता ने अपनी पत्‍नी और बेटे की ओर चलने का इशारा किया ।

लड़की ने बड़ी हसरत-भरी निगाहों से उन्‍हें जाते हुए देखा ।

उनके जाने के बाद वे अपनी पत्‍नी से बोले - ‘‘बिना दहेज दिए बेटी की शादी करके बिरादरी में नाक नहीं कटानी हमें ! डाल देना एक पोस्‍टकार्ड और लिख देना - हमें नहीं पसंद है, उनका बेटा !''

--

रावेंद्रकुमार रवि


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