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बनना ही पड़ेगा : नई कविता : रावेंद्रकुमार रवि

>> Thursday, June 24, 2010

बनना ही पड़ेगा

करते ही एक क्लिक,
सुन लिए -
तुम्हारे मधुर बोल!
देख ली -
तुम्हारी मुस्कान की खिलन!
पढ़ लिए -
तुम्हारी आँखों के स्नेहिल भाव!
नहीं महसूस हो सकी -
तुम्हारी ऊष्मा!
मेरी सुगंध के लिए,
बनना ही पड़ेगा -
तुम्हें भ्रमर!


रावेंद्रकुमार रवि

8 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari June 24, 2010 at 4:03 AM  

बेहतरीन!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) June 24, 2010 at 12:17 PM  

सुन्दर अभिव्यक्ति... खाली क्लिक से नहीं चलेगा , :) :)

Anonymous June 24, 2010 at 3:29 PM  

बधाई।
---------
क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' June 24, 2010 at 8:26 PM  

आस्था हो तो ऐसी ही!
--
आशा का संचार करती सुन्दर रचना!

मनोज कुमार June 24, 2010 at 9:50 PM  

आपने खुलकर बातें सामने रखी है!

मनोज कुमार June 24, 2010 at 9:50 PM  

आपने खुलकर बातें सामने रखी है!

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार June 25, 2010 at 2:43 AM  

मेरी सुगंध के लिए,
बनना ही पड़ेगा -
तुम्हें भ्रमर!


श्रेष्ठ सुन्दर भावाभिव्यक्ति !
बधाई !

- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

siddheshwar singh June 25, 2010 at 1:04 PM  

अच्छी कविता !

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