भविष्य-दर्शन : लघुकथा : रावेंद्रकुमार रवि
>> Thursday, July 8, 2010
आज प्रंसिपल साहब ख़ुद ही ड्राइव कर रहे थे ।
शिब्बू ने दौड़कर उनको दिलबाग़ के दो गुटखे पकड़ा दिए । लौटते समय जब उसकी नज़र वैन में बैठे हुए उन नन्हे-मुन्ने मासूम बच्चों पर पड़ी, जो ललचाई नज़रों से उसकी दुकान में लटके दिलबाग़, यामू, प्रिंस, हरसिंगार आदि के रंग-बिरंगे गुटखों को देख रहे थे, तो उसकी आँखों में अपने आप ही एक विशेष प्रकार की चमक आ गई ।
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