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जहाँ तुम होओगी : प्रणय कविता : रावेंद्रकुमार रवि

>> Sunday, August 22, 2010

बादलों के रूप में




तुम,
मुझसे
चाहे कितनी भी दूर
चली जाओ,

किंतु
मेरे आँसू
तुम्हारा पीछा
कभी नहीं छोड़ेंगे!

गालों पर
लुढ़कने से पहले ही
वाष्प बनकर
उड़ जाएँगे

और
बादलों के रूप में
संघनित
होने के बाद

एक-दूजे से
टकराकर
वहीं बरस पड़ेंगे,
जहाँ तुम होओगी!

रावेंद्रकुमार रवि

2 टिप्पणियाँ:

شہروز August 22, 2010 at 3:00 AM  

गालों पर
लुढ़कने से पहले ही
वाष्प बनकर उड़ जाएँगे
और बादलों के रूप में
संघनित होने के बाद
एक-दूजे से टकराकर
वहीं बरस पड़ेंगे,
जहाँ तुम होओगी!



क्या बात है!! बहुत खूब!!

माओवादी ममता पर तीखा बखान ज़रूर पढ़ें:
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html

Coral August 29, 2010 at 8:55 PM  

मेरे आँसू
तुम्हारा पीछा
कभी नहीं छोड़ेंगे!

बेहतरीन!

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