नन्हे दोस्तों को समर्पित मेरा ब्लॉग

दो दीप जलें : कविता : रावेंद्रकुमार रवि

>> Wednesday, November 3, 2010

दो दीप जलें


प्रिय,
आओ,
दीप जलाएँ!

तुम
एक दीप
ऐसे पकड़ो,

मैं
एक दीप
ऐसे पकड़ूँ!

दोनों
की बाती
एक करो,

दो
दीप जलें
एक जोत जगे ... ... .

दो
दीप जलें
एक जोत जगे ... ... .

दो
दीप जलें
एक जोत जगे ... ... .

दो
दीप जलें
एक जोत जगे ... ... .

दो
दीप जलें
एक जोत जगे ... ... .

दो
दीप जलें
एक जोत जगे ... ... .

दो
दीप जलें
एक जोत जगे ... ... .

रावेंद्रकुमार रवि

4 टिप्पणियाँ:

Coral November 3, 2010 at 9:45 AM  

बहुत सुन्दर ...

दीपावली कि शुभकामनाये ......

डॉ. मोनिका शर्मा November 3, 2010 at 10:27 AM  

दो
दीप जलें
एक जोत जगे ...
बहुत सुन्दर ...दीपों के त्यौहार पर हार्दिक शुभकामनाएं !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' November 3, 2010 at 11:02 AM  

बहुत सुन्दर भावो से भरी क्षणिका!
--
प्रकाश के पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!

रानीविशाल November 3, 2010 at 10:32 PM  

दो
दीप जलें
एक जोत जगे ...
बहुत सुन्दर विचार .....प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
उल्फ़त के दीप

Related Posts with Thumbnails

"सप्तरंगी प्रेम" पर पढ़िए मेरे नवगीत -

आपकी पसंद

  © Blogger templates Sunset by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP