नए वर्ष की नई सुबह : नई कविता : रावेंद्रकुमार रवि
>> Sunday, December 26, 2010
नए वर्ष की नई सुबह : कुछ झलकियाँ
नए वर्ष की नई सुबह : कुछ झलकियाँ
दो दीप जलें
क्वाँर की इस साँझ
लिखना, कैसी हो तुम?
बादलों के रूप में
तुम्हारी याद आती है
नाम तुम्हारा
आज प्रंसिपल साहब ख़ुद ही ड्राइव कर रहे थे ।
शिब्बू ने दौड़कर उनको दिलबाग़ के दो गुटखे पकड़ा दिए । लौटते समय जब उसकी नज़र वैन में बैठे हुए उन नन्हे-मुन्ने मासूम बच्चों पर पड़ी, जो ललचाई नज़रों से उसकी दुकान में लटके दिलबाग़, यामू, प्रिंस, हरसिंगार आदि के रंग-बिरंगे गुटखों को देख रहे थे, तो उसकी आँखों में अपने आप ही एक विशेष प्रकार की चमक आ गई ।
बनना ही पड़ेगा
करते ही एक क्लिक,
सुन लिए -
तुम्हारे मधुर बोल!
देख ली -
तुम्हारी मुस्कान की खिलन!
पढ़ लिए -
तुम्हारी आँखों के स्नेहिल भाव!
नहीं महसूस हो सकी -
तुम्हारी ऊष्मा!
मेरी सुगंध के लिए,
बनना ही पड़ेगा -
तुम्हें भ्रमर!
रावेंद्रकुमार रवि
लघुकथा -
हमें नहीं पसंद है
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रावेंद्रकुमार रवि
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