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मत दिखाओ : रावेंद्रकुमार रवि

>> Monday, June 6, 2011


मत दिखाओ

मैं नहीं हूँ 
प्यास का मारा 
हुआ मृग, 

जो भटकता 
फिर रहा 
मरुभूमि में हो! 

मत दिखाओ 
तुम मुझे 
मारीचिकाएँ प्यार की! 

रावेंद्रकुमार रवि

14 टिप्पणियाँ:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' June 6, 2011 at 7:35 PM  

बहुत उम्दा!

सु-मन (Suman Kapoor) June 6, 2011 at 10:04 PM  

बहुत खूब....

रावेंद्रकुमार रवि June 6, 2011 at 10:06 PM  

Facebook पर Raja Lambert का कथन --
Excellent poem....mirage of love.
The flower of cactus is very beautiful and rare...
good choice of picture to incorporate with your poem.
Congratulations Ravindra Ji for such a nice short but sweet poem.

डॉ. मोनिका शर्मा June 7, 2011 at 5:36 AM  

उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.... ....संवेदनशील पंक्तियाँ

Coral June 7, 2011 at 7:38 AM  

बहुत सुन्दर

Udan Tashtari June 7, 2011 at 8:18 AM  

एक सुन्दर रचना.

Maheshwari kaneri June 7, 2011 at 11:43 AM  

सुन्दर अभिव्यक्ति्…..….

संगीता स्वरुप ( गीत ) June 7, 2011 at 4:54 PM  

चंद पंक्तियों में खूबसूरत अभिव्यक्ति

रंजना June 7, 2011 at 4:57 PM  

वाह...

बहुत सुन्दर...

Kailash Sharma June 7, 2011 at 8:00 PM  

बहुत खूब!

डॉ. नागेश पांडेय संजय June 9, 2011 at 9:32 AM  

भावनाओं से ओत-प्रोत रचना ... और कहने का अंदाज तो आपका अछूता है ही . बधाई .

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार June 11, 2011 at 8:01 AM  

प्रिय बंधुवर रावेंद्रकुमार रवि जी
सस्नेहाभिवादन !

बहुत सुंदर !
इतनी लघु कविता … और सब कुछ अभिव्यक्त है …
रावेंद्र जी कमाल !


हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

- राजेन्द्र स्वर्णकार

Sunil Kumar June 11, 2011 at 9:40 PM  

कम शब्दों में सारगर्भित रचना , बधाई

Amrita Tanmay June 13, 2011 at 7:02 AM  

Achchha likha hai...

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