मज़दूर को देखिए : रावेंद्रकुमार रवि
>> Saturday, May 1, 2010
मज़दूर को देखिए -
बीड़ी के धुएँ में
साँसों को छौंककर
डेढ़ हड्डी पीठ पर
एक कुंतल गेहूँ लादे
रोटी के
दो क़तरों के लिए
अपनी साँझ देखती
ज़िंदगी को
लावा उगलती सड़कों पर
मृत कुत्ते की तरह
दिन-भर घसीटता है
और जब मिलते हैं
रोटी बनाने को
चार पैसे
तो दर्द से चीखती
पेशियों को
सुलाने के लिए
उन्हें दारू में घोलकर
आँतें सींच लेता है
ताकि कल फिर ... ... .
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कविता : रावेंद्रकुमार रवि
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चित्र : दिव्या शर्मा
7 टिप्पणियाँ:
यह सही है कि मजदूर हाड़तोड़ मेहनत करता है और अपनी थकावट दूर करने के लिये शराब का सहारा लेता है । लेकिन मजदूर औरते भी होती है और सच पूछा जाये तो घर का चूल्हा उन्हीकी मजदूरी से जलता है । छत्तीसगढ़ में मजदूरो के नेता शंकर गुहा नियोगी हुए थे उन्होने शराब बन्दी आन्दोलन चलाया था और उनके प्रभाव मे लाखो मजदूरो ने शराब छोड़ दी थी । अब यहाँ महिलायें शराब के खिलफ आन्दोलन कर रही है ।
यही है जिन्दगी, चक्की में पिसती हुई।
यही हालात हैं...
ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
मजदूर की जिंदगी का एक सही खाका खींच दिया...सुन्दर अभिव्यक्ति
सच्ची तस्वीर जिन्दगी से जद्दोजहद की
बहुत खूब .........
...Sundar Abhivyakti...dukhad prasang...Ishwar kare ki yah surat badle.
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