नन्हे दोस्तों को समर्पित मेरा ब्लॉग

मेरा दर्शन, रूप तुम्हारा : नवगीत : रावेंद्रकुमार रवि

>> Thursday, November 18, 2010

मेरा दर्शन, रूप तुम्हारा

मेरे मन-महेश की पारो
बनी तुम्हारी मधु-मुस्कान!
मेरा ध्यान लक्ष्य करके जो
करती चाहत का संधान!

जब-जब मुग्ध तुम्हारी छवियों
की बातें सुधियाँ करतीं!
हृदय-वेणु की मुदित तरंगें
झंकृतियों से सज उठतीं!
मेरा दर्शन, रूप तुम्हारा
बने सुवासित मीत समान!
मेरे मन...

तरुण विहग की बोली-जैसी
लगे तुम्हारी मीठी बात!
जिसको सुनकर रोम-रोम में
खिलता मधुरिम सुखद प्रभात!
मेरे प्रणय-कैमरे की तुम
बनीं प्रीति-पायस-प्रतिमान !
मेरे मन...

रावेंद्रकुमार रवि

दो दीप जलें : कविता : रावेंद्रकुमार रवि

>> Wednesday, November 3, 2010

दो दीप जलें


प्रिय,
आओ,
दीप जलाएँ!

तुम
एक दीप
ऐसे पकड़ो,

मैं
एक दीप
ऐसे पकड़ूँ!

दोनों
की बाती
एक करो,

दो
दीप जलें
एक जोत जगे ... ... .

दो
दीप जलें
एक जोत जगे ... ... .

दो
दीप जलें
एक जोत जगे ... ... .

दो
दीप जलें
एक जोत जगे ... ... .

दो
दीप जलें
एक जोत जगे ... ... .

दो
दीप जलें
एक जोत जगे ... ... .

दो
दीप जलें
एक जोत जगे ... ... .

रावेंद्रकुमार रवि

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