उसकी याद सजाने निकले : ग़ज़ल : रावेंद्रकुमार रवि
>> Wednesday, June 30, 2010
उसकी याद सजाने निकले

जब तुम हमें लुभाने निकले!
हम तुम पर मिट जाने निकले!
तुम पर अच्छी ग़ज़ल पढ़ी तो,
हम दिल से कुछ गाने निकले!
भूल सके ना अब तक जिसको,
फिर से उसे भुलाने निकले!
कल ही जिससे मुँह फेरा था,
उसको गले लगाने निकले!
जिस लौ में ना जले पतंगा,
उस लौ को जलवाने निकले!
"रवि" को जिसने याद किया है,
उसकी याद सजाने निकले!
हम तुम पर मिट जाने निकले!
तुम पर अच्छी ग़ज़ल पढ़ी तो,
हम दिल से कुछ गाने निकले!
भूल सके ना अब तक जिसको,
फिर से उसे भुलाने निकले!
कल ही जिससे मुँह फेरा था,
उसको गले लगाने निकले!
जिस लौ में ना जले पतंगा,
उस लौ को जलवाने निकले!
"रवि" को जिसने याद किया है,
उसकी याद सजाने निकले!
रावेंद्रकुमार रवि