दूरभाष : नई कविता : रावेंद्रकुमार रवि
>> Sunday, July 17, 2011
दूरभाष
हैलो, सागर!
मैं वर्षा बोल रही हूँ!
मैं संध्या के साथ
आ रही हूँ,
तुमसे मिलने!
वसुधा से कहना –
वह प्रतीक्षा न करे!
आकाश उससे
कभी नहीं मिलेगा!
वैसे
समीर के हाथों
मैंने संदेश भेज दिया है –
नीरद व्याकुल है
उससे मिलने के लिए
गिरीश के लिए!
रावेंद्रकुमार रवि (फ़ोटो : जितेंद्र रावत)