नियति : प्रणय कविता : रावेंद्रकुमार रवि
>> Monday, July 11, 2011
नियति

चार आँखें दो हुईं,
क्या हो गया!
स्वप्न की अनुगूँज का
आभास तक बिसरा गया!
करती रही मनुहार पायल,
भीजती देहरी रही!
बढ़ते रहे दो पाँव लेकिन,
दृष्टि लादे पीठ पर!
राह पर जीवन की तो
बढ़ना ही होगा,
पीठ पर हो दृष्टि
या हृदय हाथ पर!
रावेंद्रकुमार रवि
3 टिप्पणियाँ:
खूबसूरत शब्दों से सजी हुई सुन्दर रचना!
सुन्दर सशक्त कविता
खूबसूरत कविता... सुन्दर रचना!
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