हमें नहीं पसंद है : लघुकथा : रावेंद्रकुमार रवि
>> Thursday, June 17, 2010
लघुकथा -
हमें नहीं पसंद है
‘‘भइ, हमें आपकी बेटी पसंद है । आप अपनी बेटी से पूछ लीजिए कि उसे भी हमारा बेटा पसंद है या नहीं !''
लड़के के पिता ने जब यह कहा, तो ‘उनकी' बेटी ने लजाकर नजरें झुका लीं ।
यह देखकर लड़के की माँ बोलीं - ‘‘ठीक है ! अब हम सगाई की रस्म पूरी करके ही जाएँगे । अगले महीने की कोई तारीख़्ा शादी के लिए भी निश्चित कर लेंगे ... ... ... बेटी ! अपना हाथ आगे बढ़ाओ ... ... ... लो बेटा ! यह अँगूठी बहू की उँगली में पहना दो ... ... ... ''
‘‘लेकिन ... ... ... '' - उन्होंने तुरंत उनको रोक दिया ।
‘‘अरे भइ, पहनाने दीजिए !'' - लड़के के पिता ने अनुरोध किया ।
लेकिन वे बोले - ‘‘देखिए भाई साहब ! हमारी एक ही लड़की है । पहले सारी बातें तो तय कर लीजिए । बाद में सगाई भी हो जाएगी और शादी भी ।''
‘‘क्या मतलब ?''
‘‘यही कि आप लोगों की माँग क्या है ? वह भी पहले ही बता दें, तो ज़्यादा अच्छा रहेगा ।''
यह सुनकर लड़के के पिता हँसने लगे । बोले - ‘‘भगवान का दिया सब कुछ है हमारे पास । हमें तो बस आपकी बेटी चाहिए । हमारी कोई माँग नहीं है और न ही हम कुछ लेंगे ... ... ... बेटा ! तुम अँगूठी पहनाओ ।''
‘‘लेकिन फिर भी, हमें कुछ सोचने का मौका तो दीजिए ।'' - यह कहकर उन्होंने लड़के को फिर रोक दिया ।
‘‘ठीक है भइ, सोच-समझकर ही बताइएगा ।'' - बाहर की ओर साँस छोड़ते हुए लड़के के पिता ने अपनी पत्नी और बेटे की ओर चलने का इशारा किया ।
लड़की ने बड़ी हसरत-भरी निगाहों से उन्हें जाते हुए देखा ।
उनके जाने के बाद वे अपनी पत्नी से बोले - ‘‘बिना दहेज दिए बेटी की शादी करके बिरादरी में नाक नहीं कटानी हमें ! डाल देना एक पोस्टकार्ड और लिख देना - हमें नहीं पसंद है, उनका बेटा !''
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रावेंद्रकुमार रवि
7 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर।
बढ़िया।
घुघूती बासूती
Bahut Sundar Laghukatha.. Logon ko saralta par itni aashaani se yakeen kahan hota hai, aksar use kami se jodkar dekhne lagte hain.
इस लघुकथा में सामाजिक-पारिवारिक स्थितियों से उपजती विडंबनाओं को ढोती पात्रों की बेबसी और असहायता के साथ-साथ अनकी मानवीय दुर्बलताओं को भी रेखांकित किया गया है।
दहेज देना भी समाज में एक शान है....कब बदलेगी ये मानसिकता...
अच्छी लघु कथा...समाज की बुराई की ओर इंगित करती हुई
ये भी खूब रही ,
लघुकथा मुझे पसंद हैं, इसके पीछे एक कारण ये है कि जिस तरह विविधभारती पर आने वाले हवा महल में सिर्फ १० से १५ मिनट में ही सब कुछ बता देता है . वैसे ही लघु कथा लघु होते हुए भी सिर्फ कुछ पंक्तियों में सब बता देती हैं और आखिर में सन्देश भी दे देती हैं .
बहुत उम्दा, बड़े दिनों बाद आपका ब्लॉग पढ़ा , अच्छा लगा
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