खिल रहा है कमल : नवगीत : रावेंद्रकुमार रवि
>> Saturday, May 28, 2011
खिल रहा है कमल
शाम है अनमनी,
किंतु आशा नवल!
चाँदनी में धवल, खिल रहा है कमल!
कर रहा है सुस्वागत,
मधुर रात का!
रात में हो रही, हर
मधुर बात का!
भोर में मिल सकेगी ख़ुशी अब नवल!
फब रही है खिलन,
मेह में झूमकर!
मन हुआ है मगन,
नेह में डूबकर!
मेल का खेल है, पाँव रखना सँभल!
रावेंद्रकुमार रवि
-----------------------------------------------------