क्वाँर की दहलीज पर : नवगीत : रावेंद्रकुमार रवि
>> Friday, September 24, 2010
क्वाँर की दहलीज पर

गुनगुनी होने लगी है
दपदपाती धूप अब तो
क्वाँर की दहलीज पर धर पाँव!
नवविवाहित युगल-जैसी
मुदित है हर भोर अब तो
हो रहा मधुमास पूरा गाँव!
है बुलाती पास अपने
सरसती वातासि अब तो
धानवाले खेत नंगे पाँव!
सोच परदेसी पिया का
गाल पर धर हाथ अब तो
करे सजनी बैठ पीपल छाँव!
झूठ-से लगते उसे हैं
सगुन के सब काज अब तो
झूठ-सी ही भोर की अब काँव!

रावेंद्रकुमार रवि