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अनुपम उपहार : रावेंद्रकुमार रवि

>> Friday, April 23, 2010

अनुपम उपहार










प्रत्येक
दृष्टि
-मिलन पर
तुम्हारे
द्वारा
दिया
गया
निश्छल
मुस्कान का
अनुपम
उपहार

मेरे
हृदयाकाश में
वैसे
ही
सजा
हुआ है,
जैसे
-
भोर
के
आँचल
में सजी
रवि
की
नव
रश्मियाँ!

रावेंद्रकुमार रवि

8 टिप्पणियाँ:

Anonymous April 23, 2010 at 11:19 PM  

kya baat hai bhai
bahut accha kavita

दीनदयाल शर्मा April 23, 2010 at 11:42 PM  

नज़र से नज़र मिली,
अधर मुस्कान खिली,
रवि की रश्मि बिखरी,
आँचल में बहुत भली.

Udan Tashtari April 24, 2010 at 2:46 AM  

बहुत सुन्दर और कोमल रचना.

M VERMA April 24, 2010 at 4:03 AM  

वाह
बहुत सुन्दर एहसास

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' April 24, 2010 at 7:03 AM  

भोर के आँचल में पसरी,
रश्मियाँ हैं खिल रही!
धरा के आँगन में खुशियाँ,
झिलमिलाती मिल रही!

रचना सभी कुछ तो कह रही है!

संगीता स्वरुप ( गीत ) April 24, 2010 at 12:06 PM  

खूबसूरत भावों से सजी सुन्दर रचना....

संजय भास्‍कर April 25, 2010 at 8:59 AM  

हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.

हर्षिता April 27, 2010 at 1:47 AM  

सुन्दर रचना।

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