नन्हे दोस्तों को समर्पित मेरा ब्लॉग

मिलने का मौसम आया है : नवगीत : रावेंद्रकुमार रवि

>> Thursday, February 25, 2010

मिलने का मौसम आया है











होली आई रे! ख़ुशियाँ लाई रे!

अंग-अंग से
धार रंग की,
करे ख़ूब परिहास!
बरज़ोरी
कर-करके छेड़े,
आँचल को वातास!
होली आई रे! ख़ुशियाँ लाई रे!

लेकर चुंबन
मधुर गाल का,
करती अलक विलास!
काट चिकोटी
कसी कमर में
करे करधनी हास!
होली आई रे! ख़ुशियाँ लाई रे!

मधुर सुगंधित
छोड़ रही हैं,
साँसें प्रीत-सुवास!
अधर-अधर से
सरस कर रहे,
मधुमय मधु-सहवास!
होली आई रे! ख़ुशियाँ लाई रे!

मिलने का
मौसम आया है,
मुख पर सजी उजास!
मधु-संकेत
करे साजन को
प्रिया बुलाए पास!
होली आई रे! ख़ुशियाँ लाई रे!

रावेंद्रकुमार रवि

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तब तक ... ... . : रावेंद्रकुमार रवि

>> Saturday, February 20, 2010

तब तक ... ... .










हमारी मुलाकात
हमेशा ऐसे ही होती है -
मैं देर से पहुँचता हूँ
और वह
"इतनी देर क्यों कर दी?"
"देर से क्यों आए?"
देर तक पूछती रहती है!

लेकिन मैं
उत्तर दिए बिना
उसे अपलक निहारता रहता हूँ!
फिर वह भी,
मुझे!

और जब मैं चलने लगता हूँ,
तो वह
तब तक मुझसे
"कब मिलोगे?"
"कहाँ मिलोगे?"
पूछती रहती है,
जब तक कि मैं
उसे बता नहीं देता हूँ!

रावेंद्रकुमार रवि

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वसंत फिर आता है : रावेंद्रकुमार रवि

>> Sunday, February 14, 2010


वसंत आता है -
जब घर में जन्म लेती है बिटिया!

वसंत झिलमिलाता है -
जब उसके नयनों में सरसता है अपनापन!

वसंत मुस्कराता है -
जब मन पर सजते हैं उसकी मुस्कान के सुमन!

वसंत खिलखिलाता है -
जब सुवासित हवा को गुदगुदाते हैं उसके बोल!

वसंत गुनगुनाता है -
जब पुलकती है उसकी पैजनियों की झनक!

वसंत लजाता है -
जब उसके कपोलों पर खिलखिलाता है गुलमोहर!

वसंत महकता है -
जब उसके उर में विहँसता है गुलाब!

वसंत किलकता है -
जब उसके मन में जन्म लेता है आनंद!

वसंत अकुलाता है -
जब उसके हाथों पर रचता है अमलतास!

वसंत चला जाता है -
जब वह करती है सोलह सिंगार!

वसंत फिर आता है -
जब ... ... ... ..
रावेंद्रकुमार रवि

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मेरे लिए : रावेंद्रकुमार रवि

>> Monday, February 8, 2010

मेरे लिए
"मैं तुम्हारे हृदय में
झंकार भर दूँगा
प्रणय की!"

यदि नहीं
विश्वास होता है
तुम्हें इस बात पर,

खोलकर देखो ज़रा तुम,
द्वार अपने हृदय का
मेरे लिए!
--
रावेंद्रकुमार रवि

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मुझको बता दो : रावेंद्रकुमार रवि

>> Tuesday, February 2, 2010

मुझको बता दो
मैं तुम्हारी
हृदय-वीणा की
मधुर झंकार
सुनना चाहता हूँ!

हैं अगर
उसमें बसे
सुर प्यार के
मेरे लिए,
मुझको बता दो!

चला आऊँगा
सजाने,
मैं उन्हें
अपने हृदय के
गीत की
सबसे मधुरतम्
तान से!
--
रावेंद्रकुमार रवि

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