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दीपक-बाती झूम रहे हैं : कविता : रावेंद्रकुमार रवि

>> Friday, October 21, 2011

दीपक-बाती  झूम रहे हैं


गीत सुनाते 
चहकें हिलमिल
बच्चे घर के आँगन में!
ज्यों चहकें 
सतरंगे बादल
नीलगगन में सावन में!

सबके ओठों 
पर बिखरी
हैं खीलों-सी मुस्कानें!
और सजी हैं 
आँखों में
सपनों की मधुर दुकानें!

दीपक-बाती 
झूम रहे हैं
बँधे प्रेम के बंधन में!
किलक रहीं 
फुलझड़ी-सरीखी
झिलमिल ख़ुशियाँ हर मन में !

रावेंद्रकुमार रवि

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