सुमधुर आवाज़ : रावेंद्रकुमार रवि
>> Friday, March 26, 2010
सुमधुर आवाज़
जब भी
आती है याद
वह सिंदूरी शाम,
जब देखा था मैंने
तुम्हें पहली-पहली बार,
अनुगुंजित
होती है
अंतस के कोनों में
यह सुमधुर आवाज़ --
"प्रिया, ख़त लिखूँ तुम्हें!"
रावेंद्रकुमार रवि
सुमधुर आवाज़
जब भी
आती है याद
वह सिंदूरी शाम,
जब देखा था मैंने
तुम्हें पहली-पहली बार,
अनुगुंजित
होती है
अंतस के कोनों में
यह सुमधुर आवाज़ --
"प्रिया, ख़त लिखूँ तुम्हें!"
रावेंद्रकुमार रवि
ब्याह रचाने को
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मुझे
देखकर
जब
करती
है
नृत्य
तुम्हारी
अधर-परी!
उससे
ब्याह
रचाने
को
चल
पड़ती
मेरी
हृदय-परी!
रावेंद्रकुमार रवि
कुछ दिनों बादRead more...
नहीं कहूँगा -
तुम मेरी हो,
तुम भी मत कहना -
तुम मेरे!
बस यूँ ही
मिलती रहना,
मुस्कानों के
उपहार सहित!
कुछ दिनों बाद
सब स्वयं कहेंगे -
वह उसकी,
वह उसका है!
--
रावेंद्रकुमार रवि
जादूRead more...
दुनिया की भीड़ में
अनगिनत चेहरों से जुड़े
बहुत से नामों को
मैंने
अपने कोरे मन-पृष्ठ पर
लिखना चाहा,
लेकिन लिख नहीं पाया!
कुछ
आड़ी-तिरछी
रेखाएँ ही बन पाईं!
लेकिन उस रोज़
जब देखा मैंने -
एक प्यारा-सा चेहरा,
तो एक अजीब-सी हरक़त हुई
उन आड़ी-तिरछी रेखाओं में
और
अपने आप ही लिख गया
मेरे मन-पृष्ठ पर
एक प्यारा-सा नाम -
तुम्हारा!
रावेंद्रकुमार रवि
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