कैसे भूल जाऊँ? : रावेंद्रकुमार रवि
>> Thursday, April 8, 2010
कैसे भूल जाऊँ?
नहीं भूल सकता -
केश-परिमल के
नीहार में
भ्रमर-सा
खो जाना!
झुकी पलकों की
छाँव में
पथिक-सा
सो जाना!
नहीं भूल पाता -
रूप-जलधि की
लहरों में
प्रणय-बिंबों-सा
रच जाना!
उड़ते आँचल की
गोदी में
मस्त पवन-सा
बस जाना!
कैसे भूल जाऊँ?
मन की
काव्य-पंक्तियों में
कवि-सा
रम जाना!
बदली-सी
अलकावलि में
रवि-सा
सज जाना!
रावेंद्रकुमार रवि
8 टिप्पणियाँ:
अति सुंदर, एक सार्थक पहल
रवि जी आपको बहुत - बहुत बधाई
कैसे भूल जाऊं ? जितनी सुन्दर कविता के शब्द... उतने ही सुन्दर भाव..और चित्र भी सोने पर सुहागा...वाह ! रवि भई. बधाई.
सुन्दर रचना!
सुन्दर भावों और सुन्दर शब्दों से सजी खूबसूरत रचना ....बधाई
"नहीं भूल सकता
माँ के
आँचल में सिमटे दुलार को
पिता के
असीमित प्यार को
प्रियतमा की
बाहों के हार को
बहारो का
आना
और जाना
यही तो है
जीवन.."
रवि जी!
हम तो आपकी कविता को पढ़कर
अतीत की यादों में खो ही गये!
बहुत ही सुन्दर रचना है !
कैसे भूल जाऊँ?
मन की
काव्य-पंक्तियों में
कवि-सा
रम जाना!
बदली-सी
अलकावलि में
रवि-सा
सज जाना!
.... Man ke bhawon ke sundar abhivyakti.....
Saarthak rachna....
सुन्दर भावों और सुन्दर शब्दों से सजी खूबसूरत रचना ....बधाई
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