नन्हे दोस्तों को समर्पित मेरा ब्लॉग

गरीब : लघुकथा : रावेंद्रकुमार रवि

>> Wednesday, June 29, 2011

गरीब
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‘‘भइ, ईमानदारी की भी हद हो गई !’’ - इंसपेक्टर साहब हैट उतारते हुए अपनी पत्नी से बोले
पत्नी ने उत्सुक होकर पूछा - ‘‘क्यों, क्या हुआ ?’’
‘‘आज एक ठेलेवाला आया था, थाने में ’’
‘‘तो ?’’
‘‘तो क्या, मूर्ख कहीं का ! पूरे दस हज़ार की गड्डी जमा कर गया ’’
‘‘अच्छा ’’
‘‘हाँ, और बोला कि पड़ी मिली है मालिक का पता चल जाता, तो उसे दे देता अपने पास रखूँगा, तो खर्च हो जाएँगे ’’ 
‘‘और आप इन्हें घर ले आए बहुत अच्छी बात है ! अब क्या इन्हें गरीबों में बँटवाने का इरादा है ?’’ - पत्नी ने उन पर व्यंग्य कसा
लेकिन वे उसकी बात का बुरा मानते हुए बोले - ‘‘तुम भी ... ... पूरी बुद्धू हो ... ... अरे, हम कौन से धन्ना सेठ हैं हम भी तो गरीब ही हैं जाओ, तिजोरी में सँभालकर रख दो काम आएँगे ’’ 
--
रावेंद्रकुमार रवि 

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सजाकर मुस्कान में : रावेंद्रकुमार रवि

>> Wednesday, June 22, 2011

सजाकर मुस्कान में





हो गईं सुवासित
सब हृदय की वीथिकाएँ,
जब किया
तुमने पदार्पण
सजाकर मुस्कान में
निश्छल प्रणय की
भावनाओं को!

रावेंद्रकुमार रवि

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अद्वितीय होता है : नई कविता : रावेंद्रकुमार रवि

>> Wednesday, June 15, 2011

अद्वितीय होता है 
 
चाहे 
कितनी भी देर में सही
पर 
जब पहनाती है प्रकृति 
कैक्टस को मुकुट
तो वह 
अद्वितीय होता है!
रावेंद्रकुमार रवि
  

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मत दिखाओ : रावेंद्रकुमार रवि

>> Monday, June 6, 2011


मत दिखाओ

मैं नहीं हूँ 
प्यास का मारा 
हुआ मृग, 

जो भटकता 
फिर रहा 
मरुभूमि में हो! 

मत दिखाओ 
तुम मुझे 
मारीचिकाएँ प्यार की! 

रावेंद्रकुमार रवि

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