नए वर्ष की नई सुबह : नई कविता : रावेंद्रकुमार रवि
>> Sunday, December 26, 2010
नए वर्ष की नई सुबह : कुछ झलकियाँ
कल भी मैं
सुबह पाँच बजे उठकर
पढ़ने का संकल्प लेकर
सोया था,
पर आज उठा वही आठ बजे ।
रोज़ की तरह -
रजाई के अंदर पड़ा-पड़ा
घड़ी का अलार्म सुनता रहा ।
नए वर्ष की नई सुबह देखने
छत पर गया, तो देखा -
पिछले कई दिनों की तरह
आज भी सूरज
कोहरे की चादर के पीछे खड़ा
टिमटिमा रहा है ।
रोज़ की तरह -
सड़क के किनारे
बत्तख्ों और मुर्गियाँ
गंदी नालियों में से
अपने लिए
सुलभ आहार खोज रहे हैं ।
चाय की दुकान पर बैठे
कुछ लोग
अखबार में घुसकर
चाय पी रहे हैं
और कुछ लोग
दुकान के आगे जल रही
धान की भूसी ताप रहे हैं ।
रोज़ की तरह -
छोटा भाई कह रहा है -
मैं आज नहीं
कल स्कूल जाऊँगा
और मम्मी
उसे ज़बरदस्ती तैयार कर रही हैं ।
टीवी, रेडियो, अखबार
और वेबसाइटों पर भी
कुछ नया नहीं है ।
रेडियो-टीवी के उद्घोषक
उसी पुराने अंदाज़ में
‘हैप्पी न्यू इयर' ज़्यादा
और ‘नव वर्ष मंगलमय हो'
कम सुना रहे हैं ।
अखबारों के मुखपृष्ठ
और
वेबसाइटों के होमपेज़
अपने एक कोने में
ऐसा ही कुछ दिखा रहे हैं ।
मैं हर ओर
एक नयापन खोज रहा हूँ,
पर कहीं भी
कुछ भी नया नहीं है
या फिर
सब कुछ नया ही नया है,
जो मुझको
पुराना लग रहा है ।
आज ठंड कुछ ज़्यादा ही है ।
मैं बिना नहाए ही
फिर से रजाई में घुस गया हूँ,
क्योंकि मुझे
नए वर्ष की नई सुबह से अच्छी
अपनी पुरानी रजाई लग रही है
और निश्चित रूप से
यही नई बात भी है ।
मैं बहुत ख़्ाश हुआ !
चलो, कुछ तो मिला -- ‘‘नया'' !
--
रावेंद्रकुमार रवि
9 टिप्पणियाँ:
बहुत ही सुन्दर रचना! वाकई कुछ भी तो नया नहीं लगता.
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 28 -12 -2010
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
सही कहा ..नया कुछ नहीं ..
पुरानी रिजाई ही भा रही थी यही नया अच्छा लगा ..
bahut mazedar lagi.
आज ठंड कुछ ज़्यादा ही है ।
मैं बिना नहाए ही
फिर से रजाई में घुस गया हूँ,
क्योंकि मुझे
नए वर्ष की नई सुबह से अच्छी
अपनी पुरानी रजाई लग रही है
और निश्चित रूप से
यही नई बात भी है ।
maza aa gaya ... rajai ke andar hi sukun hai, bahara kya naya kya purana !
सिर्फ तिथियाँ बदलती हैं...
नया क्या...!!!
सुन्दर रचना!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..कुछ भी तो नया नहीं लगता नववर्ष में
नया नहीं होकर भी हर दिन नया ही तो है ...
मगर आपकी कविता में साफगोई अच्छी लगी ...
नयी सुबह से रजाई की गर्मी आपको नयी लगी ...
नए वर्ष की नई सुबह की झलकियों के शब्दचित्र
बहुत सुन्दर रचे हैं आपने!
--
नववर्ष की शुभकामनाएँ!
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