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सरस झोंका : रावेंद्रकुमार रवि

>> Thursday, July 22, 2010

सरस झोंका

अंबर में डोल रहा
बादल आवारा!
वसुधा को छेड़ रहा
मारकर फुहारा!

मधुमुखियाँ कहती हैं
फूल हमें भाए!
भौंरों ने कलियों के
घूँघट सरकाए!

नेह-भरी अँखियों में
ख़ुद को जब देखा!
साजन ने हाथ पकड़
सजनी को रोका!

गालों पर सजने का
आज मिला मौका!
अलकों को छेड़ गया
एक सरस झोंका!


रावेंद्रकुमार रवि

6 टिप्पणियाँ:

Sunil Kumar July 22, 2010 at 9:40 PM  

achhi rachna badhai

Udan Tashtari July 23, 2010 at 8:13 AM  

बेहतरीन रचना.

संजय भास्‍कर July 24, 2010 at 6:35 PM  

बहुत सुंदर भाव युक्त कविता

हमारीवाणी July 25, 2010 at 10:19 PM  

हमारीवाणी का लोगो अपने ब्लाग पर लगाकर अपनी पोस्ट हमारीवाणी पर तुरंत प्रदर्शित करें

हमारीवाणी एक निश्चित समय के अंतराल पर ब्लाग की फीड के द्वारा पुरानी पोस्ट का नवीनीकरण तथा नई पोस्ट प्रदर्शित करता रहता है. परन्तु इस प्रक्रिया में कुछ समय लग सकता है. हमारीवाणी में आपका ब्लाग शामिल है तो आप स्वयं हमारीवाणी पर अपनी ब्लागपोस्ट तुरन्त प्रदर्शित कर सकते हैं.

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वाणी गीत July 26, 2010 at 4:56 PM  

सरस झोंके की छेड़छाड़ अच्छी है ..!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' May 29, 2011 at 7:08 AM  

यह सरस झोंका बहुत बढ़िया रहा!

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