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दीपक-बाती झूम रहे हैं : कविता : रावेंद्रकुमार रवि

>> Friday, October 21, 2011

दीपक-बाती  झूम रहे हैं


गीत सुनाते 
चहकें हिलमिल
बच्चे घर के आँगन में!
ज्यों चहकें 
सतरंगे बादल
नीलगगन में सावन में!

सबके ओठों 
पर बिखरी
हैं खीलों-सी मुस्कानें!
और सजी हैं 
आँखों में
सपनों की मधुर दुकानें!

दीपक-बाती 
झूम रहे हैं
बँधे प्रेम के बंधन में!
किलक रहीं 
फुलझड़ी-सरीखी
झिलमिल ख़ुशियाँ हर मन में !

रावेंद्रकुमार रवि

5 टिप्पणियाँ:

संगीता स्वरुप ( गीत ) October 23, 2011 at 11:02 AM  

बहुत सुन्दर गीत ..दीपावली की शुभकामनायें

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') October 23, 2011 at 5:04 PM  

बहुत प्यारा गीत...
सादर बधाई....

चंदन October 23, 2011 at 8:13 PM  

बहुत हि सुन्दर और प्यारा गीत!
दीवाली कि शुभकामनाएं!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' October 28, 2011 at 9:56 PM  

सुन्दर रचना!
आपको और आपके पूरे परिवार को दीपावली, गोवर्धनपूजा और भइयादूज की शुभकामनाएं!

कविता रावत November 12, 2011 at 5:22 PM  

bahut sundar geet..

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