नन्हे दोस्तों को समर्पित मेरा ब्लॉग

जादू : रावेंद्रकुमार रवि

>> Friday, March 5, 2010

जादू











दुनिया की भीड़ में
अनगिनत चेहरों से जुड़े
बहुत से नामों को
मैंने
अपने कोरे मन-पृष्ठ पर
लिखना चाहा,
लेकिन लिख नहीं पाया!

कुछ
आड़ी-तिरछी
रेखाएँ ही बन पाईं!

लेकिन उस रोज़
जब देखा मैंने -
एक प्यारा-सा चेहरा,
तो एक अजीब-सी हरक़त हुई
उन आड़ी-तिरछी रेखाओं में
और
अपने आप ही लिख गया
मेरे मन-पृष्ठ पर
एक प्यारा-सा नाम -
तुम्हारा!

रावेंद्रकुमार रवि

8 टिप्पणियाँ:

रंजन (Ranjan) March 5, 2010 at 11:53 PM  

bahut sundar..

Chandan Kumar Jha March 6, 2010 at 10:54 AM  

सुन्दर कविता !!!

Chandan Kumar Jha March 6, 2010 at 10:54 AM  

सुन्दर कविता !!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' March 9, 2010 at 9:00 PM  

जाने कितने चेहरों का दिग्दर्शन मैंने पाया!
किन्तु आपके मुखड़े ने मन मेरा बहुत लुभाया!
तुमको देखा है मैंने केवल मन की आँखों से,
इसीलिए अपने मन को अन्यत्र नहीं भटकाया!!

हर्षिता March 9, 2010 at 10:02 PM  

बहुत अच्छी कविता है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) March 10, 2010 at 12:08 AM  

भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति...आड़ी तिरछी रेखाएं एक नाम में बदल ही गयीं...बहुत सुन्दर

ज्योति सिंह March 12, 2010 at 11:05 PM  

बहुत ही सुन्दर रचना सादगी लिए हुए
जादू

[Photo]









दुनिया की भीड़ में
अनगिनत चेहरों से जुड़े
बहुत से नामों को
मैंने
अपने कोरे मन-पृष्ठ पर
लिखना चाहा,
लेकिन लिख नहीं पाया!

कुछ
आड़ी-तिरछी
रेखाएँ ही बन पाईं!

लेकिन उस रोज़
जब देखा मैंने -
एक प्यारा-सा चेहरा,
तो एक अजीब-सी हरक़त हुई
उन आड़ी-तिरछी रेखाओं में
और
अपने आप ही लिख गया
मेरे मन-पृष्ठ पर
एक प्यारा-सा नाम -
तुम्हारा!

रविंद्र "रवी" March 18, 2010 at 11:39 PM  

अदभूत, जादू कर दिया उस चेहरे ने दुनिया कि भीड में..

Related Posts with Thumbnails

"सप्तरंगी प्रेम" पर पढ़िए मेरे नवगीत -

आपकी पसंद

  © Blogger templates Sunset by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP