प्रीत वो मनमीत की : नवगीत : रावेंद्रकुमार रवि
>> Sunday, February 6, 2011
मधुर गीत गा रही!
प्रीत वो मनमीत की है
बहुत याद आ रही!
खेतों में सरसों की
सरस रहीं क्यारियाँ!
बाट जोहें साजन की
गाँव की कुमारियाँ!
जो अपनी मुस्की से
मुझको रिझाते हैं,
मुझको तो उन अधरों
की महक लुभा रही!
प्रीत वो मनमीत की .. .. .. .
चलती है मस्त पवन
करती शैतानियाँ!
गुप-चुप कुछ कहती हैं
चुनरी की बानियाँ!
करती है नयनों से
चंचल संकेत जो,
मुझको वो प्यारी-सी
झलक याद आ रही!
प्रीत वो मनमीत की .. .. .. .
मौसम ने छेड़ी हैं
स्वप्निल शहनाइयाँ!
तन-मन पर थिरक रहीं
प्यार की कहानियाँ!
जो अपनी रुनझुन से
बेसुध कर जाती है,
मुझको तो पायल की
वो झनक बुला रही!
प्रीत वो मनमीत की .. .. .. .
रावेंद्रकुमार रवि
प्रीत वो मनमीत की है
बहुत याद आ रही!
खेतों में सरसों की
सरस रहीं क्यारियाँ!
बाट जोहें साजन की
गाँव की कुमारियाँ!
जो अपनी मुस्की से
मुझको रिझाते हैं,
मुझको तो उन अधरों
की महक लुभा रही!
प्रीत वो मनमीत की .. .. .. .
चलती है मस्त पवन
करती शैतानियाँ!
गुप-चुप कुछ कहती हैं
चुनरी की बानियाँ!
करती है नयनों से
चंचल संकेत जो,
मुझको वो प्यारी-सी
झलक याद आ रही!
प्रीत वो मनमीत की .. .. .. .
मौसम ने छेड़ी हैं
स्वप्निल शहनाइयाँ!
तन-मन पर थिरक रहीं
प्यार की कहानियाँ!
जो अपनी रुनझुन से
बेसुध कर जाती है,
मुझको तो पायल की
वो झनक बुला रही!
प्रीत वो मनमीत की .. .. .. .
रावेंद्रकुमार रवि
3 टिप्पणियाँ:
वसंत की बयार का पूरा पूरा असर है गीत पर । बधाई ।
वाह!
आपने तो ऋतुराज का पूरा रंग जमा दिया है
इस रचना में।
बसंत का स्वागत करती सुंदर रचना ......
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