समाधान : व्यंग्य कविता : रावेंद्रकुमार रवि
>> Sunday, January 30, 2011
समाधान
"समधीजी!
कुछ तो सोचिए!
एक साथ इतना अधिक
दहेज मत माँगिए!"
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"कोई बात नहीं!
क्या सोचना?
सामान अभी ले लेंगे,
नोट किस्तों में दे देना!"
रावेंद्रकुमार रवि
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3 टिप्पणियाँ:
सच है पर देना तो पड़ेगा ही ....
कड़वा सच है हमारे समाझ का
बहुत कटु पर सार्थक व्यंग..
कुछ ही शब्दों में सच का रेखांकन....
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