तुम्हीं बता दो ... ... . : रावेंद्रकुमार रवि
>> Thursday, July 15, 2010
तुम्हीं बता दो ... ...
मेरी आँखों को भाती है -
मधु-मुस्कान तुम्हारी
और दमकती छवि तुम्हारी -
मधु-मुस्कान तुम्हारी
और दमकती छवि तुम्हारी -
चंदा-जैसी!
मेरे कानों में अमृत घोले -
आवाज़ तुम्हारी
और सरसती हँसी तुम्हारी -
झरने-जैसी!
मेरी साँसों को महकाता -
अधर-पराग तुम्हारा
और सुगंधित अलक तुम्हारी -
हरसिँगार-जैसी!
मेरे मन को पुलकित करता -
प्रिय अनुराग तुम्हारा
और नेह से भीगी बतियाँ
मिसरी-जैसी!
कैसे ना बन जाऊँ फिर
मैं रसिक तुम्हारा?
तुम्हीं बता दो -
तुम मुझको क्यों
इतनी अच्छी लगती हो?
रावेंद्रकुमार रवि
7 टिप्पणियाँ:
कैसे ना बन जाऊँ फिर
मैं रसिक तुम्हारा?
तुम्हीं बता दो -
तुम मुझको क्यों
इतनी अच्छी लगती हो?
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बहुत ही सुन्दर
ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कवि निर्वैयक्तिकता का सारा आवरण उतारकर एक आत्मीय की भांति अत्यंत निजी ढ़ंग से बातें कर रहा है।
शानदार पोस्ट
आपकी पोस्ट आज चर्चा मंच पर भी है...
http://charchamanch.blogspot.com/2010/07/217_17.html
कैसे ना बन जाऊँ फिर
मैं रसिक तुम्हारा?
तुम्हीं बता दो -
तुम मुझको क्यों
इतनी अच्छी लगती हो?
बहुत ही सुन्दर रचना
शमीम जयपुरी साहब का एक शेर याद गया आपकी कविता पढ़ कर:
तुझसे बढ़ के हसीं कौन है
किसको देखूं तुझे देख कर
इस बेहतरीन कविता के लिए बधाई...
नीरज
बहुत अच्छा....मेरा ब्लागः"काव्य कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com .........साथ ही मेरी कविता "हिन्दी साहित्य मंच" पर भी.......आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे...धन्यवाद
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