दूरभाष : नई कविता : रावेंद्रकुमार रवि
>> Sunday, July 17, 2011
दूरभाष

हैलो, सागर!
मैं वर्षा बोल रही हूँ!
मैं संध्या के साथ
आ रही हूँ,
तुमसे मिलने!
वसुधा से कहना –
वह प्रतीक्षा न करे!
आकाश उससे
कभी नहीं मिलेगा!
वैसे
समीर के हाथों
मैंने संदेश भेज दिया है –
नीरद व्याकुल है
उससे मिलने के लिए
गिरीश के लिए!
रावेंद्रकुमार रवि (फ़ोटो : जितेंद्र रावत)
13 टिप्पणियाँ:
बहुत बढ़िया...
रचना में शब्दों का
बहुत ही अनूठा प्रयोग किया गया है!
--
इस मनभावन पोस्ट को
प्रकाशित करने के लिए धन्यवाद!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग इस ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो हमारा भी प्रयास सफल होगा!
shabdo ka behatarin prayog....bahut achchha
सुंदर शब्द प्रयोग।
वाह...
वाह क्या बात है
बहुत सुंदर
खूबसूरत शब्द संयोजन...सुंदर प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
बहूत सुन्दर..
♥
आपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत खूब ....
शुभकामनायें आपको !
यह अनोखी दूरभाषीय वार्ता बहुत पसन्द आई...बधाई...।
प्रियंका गुप्ता
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