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दूरभाष : नई कविता : रावेंद्रकुमार रवि

>> Sunday, July 17, 2011

दूरभाष


हैलो, सागर!

मैं वर्षा बोल रही हूँ!
मैं संध्या के साथ
आ रही हूँ,
तुमसे मिलने!

वसुधा से कहना
वह प्रतीक्षा न करे!
आकाश उससे
कभी नहीं मिलेगा!

वैसे
समीर के हाथों
मैंने संदेश भेज दिया है
नीरद व्याकुल है
उससे मिलने के लिए
गिरीश के लिए!

रावेंद्रकुमार रवि 

11 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari July 18, 2011 at 12:12 AM  

बहुत बढ़िया...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' July 24, 2011 at 6:52 PM  

रचना में शब्दों का
बहुत ही अनूठा प्रयोग किया गया है!
--
इस मनभावन पोस्ट को
प्रकाशित करने के लिए धन्यवाद!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' July 24, 2011 at 8:31 PM  
This comment has been removed by the author.
Anamikaghatak July 25, 2011 at 8:10 AM  

shabdo ka behatarin prayog....bahut achchha

देवेन्द्र पाण्डेय July 25, 2011 at 8:45 AM  

सुंदर शब्द प्रयोग।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') July 25, 2011 at 8:48 AM  

वाह...

महेन्द्र श्रीवास्तव July 25, 2011 at 5:07 PM  

वाह क्या बात है
बहुत सुंदर

Dorothy July 25, 2011 at 10:27 PM  

खूबसूरत शब्द संयोजन...सुंदर प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.

Kailash Sharma September 27, 2011 at 8:08 PM  

बहूत सुन्दर..

Satish Saxena October 13, 2011 at 8:41 AM  

बहुत खूब ....
शुभकामनायें आपको !

प्रियंका गुप्ता November 3, 2011 at 10:49 AM  

यह अनोखी दूरभाषीय वार्ता बहुत पसन्द आई...बधाई...।

प्रियंका गुप्ता

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