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हँसी का टुकड़ा : रावेंद्रकुमार रवि

>> Saturday, May 15, 2010

हँसी का टुकड़ा


नथनी की परछाईं पर, सो
रहा हँसी का टुकड़ा!
उसे सुनाकर ख़ुश है लोरी,
गोरी तेरा मुखड़ा!

लट ने चूमा, उँगली ने छू
धीरे से सहलाया!
फिर उसको ओंठों पर धरकर
मेरी ओर उड़ाया!
मेरे पास पहुँचकर उसने
दूर कर दिया दुखड़ा!
नथनी की परछाईं पर ... ... .

मैंने भी उसके सुर से सुर
लेकर गीत बनाया!
फिर उसको अपनी साँसों की
ख़ुशबू से महकाया!
महक-महककर चमक आ गई,
दमक उठा है मुखड़ा!
नथनी की परछाईं पर ... ... .

रावेंद्रकुमार रवि

14 टिप्पणियाँ:

संजय भास्‍कर May 15, 2010 at 7:43 PM  

महक-महककर चमक आ गई, दमक उठा है मुखड़ा!नथनी की परछाईं पर ... ... .


इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

संजय भास्‍कर May 15, 2010 at 7:44 PM  

.......प्रशंसनीय रचना - बधाई

M VERMA May 15, 2010 at 8:16 PM  

मैंने भी उसके सुर से सुर
लेकर गीत बनाया!
फिर उसको अपनी साँसों की
ख़ुशबू से महकाया!
और फिर उसके सुरों से बने गीत का स्वरूप क्या होगा!!
बहुत सुन्दर और फिर चित्र तो ....

दिलीप May 15, 2010 at 11:05 PM  

chitra aur geet dono hi sundar...

संगीता स्वरुप ( गीत ) May 16, 2010 at 11:53 AM  

खूबसूरत गीत ...

मनोज कुमार May 16, 2010 at 4:05 PM  

वाह! रवि जी वाह!!
छा गए!!!
पहला बंद पढकर मुंह से उफ़! निकला और आंखें बंद कर अनुभूति के सागर में डूब गया!

दूसरा बंद पढकर मैथिली शरण गुप्त जी की ये पंक्तियां याद आई
नाक का मोती अधर की कांति से
बीज दाड़िम का समझ कर भ्रांति से
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है
पूछता है अन्य शुक यह कौन है।


तीसरा बंद पढकर यह गा रहा हूं
मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा
तस्वीर भी लजवाब लगई है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' May 16, 2010 at 9:11 PM  

गोल-गोल जन्दा जैसी,
नथनी की शोभा न्यारी है!
गोरी के मुखड़े की यह छवि,
मनमोहक प्यारी है!!
--
रवि ने रविमन पर प्यारा सा,
गीत मधुर टाँका है!
मानों इन्द्रधनुष नभ के,
आँचल में से झाँका है!!

siddheshwar singh May 17, 2010 at 9:08 AM  

lyrical presentation of lyrical moments.

रावेंद्रकुमार रवि May 17, 2010 at 9:07 PM  

सिद्धेश्वर जी की टिप्पणी का हिंदी अनुवाद -

गेय पलों का गेय प्रस्तुतीकरण!

alka mishra May 19, 2010 at 6:18 PM  

गीत सुनकर [पढ़कर]मजा आ गया रवि जी,आपने नथनी की महत्ता तो बढ़ायी ही गोरी की लोरी का भी जवाब नहीं
मुबारका

KK Yadav May 21, 2010 at 9:37 AM  

अच्छा सौन्दर्यबोध ...सहज प्रस्तुति..बधाई.

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" May 24, 2010 at 11:10 AM  

बहुत सुन्दर गीत !

स्वप्निल तिवारी May 24, 2010 at 11:35 AM  

kya bat hai ...pyaar bhare palon ko badi khubsurati se likh diya hai aap ne

पवन धीमान June 17, 2010 at 4:55 PM  

बहुत अच्छी रचना

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