हँसी का टुकड़ा : रावेंद्रकुमार रवि
>> Saturday, May 15, 2010
नथनी की परछाईं पर, सो
रहा हँसी का टुकड़ा!
उसे सुनाकर ख़ुश है लोरी,
गोरी तेरा मुखड़ा!
लट ने चूमा, उँगली ने छू
धीरे से सहलाया!
फिर उसको ओंठों पर धरकर
मेरी ओर उड़ाया!
मेरे पास पहुँचकर उसने
दूर कर दिया दुखड़ा!
नथनी की परछाईं पर ... ... .
मैंने भी उसके सुर से सुर
लेकर गीत बनाया!
फिर उसको अपनी साँसों की
ख़ुशबू से महकाया!
महक-महककर चमक आ गई,
दमक उठा है मुखड़ा!
नथनी की परछाईं पर ... ... .
रावेंद्रकुमार रवि
14 टिप्पणियाँ:
महक-महककर चमक आ गई, दमक उठा है मुखड़ा!नथनी की परछाईं पर ... ... .
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
.......प्रशंसनीय रचना - बधाई
मैंने भी उसके सुर से सुर
लेकर गीत बनाया!
फिर उसको अपनी साँसों की
ख़ुशबू से महकाया!
और फिर उसके सुरों से बने गीत का स्वरूप क्या होगा!!
बहुत सुन्दर और फिर चित्र तो ....
chitra aur geet dono hi sundar...
खूबसूरत गीत ...
वाह! रवि जी वाह!!
छा गए!!!
पहला बंद पढकर मुंह से उफ़! निकला और आंखें बंद कर अनुभूति के सागर में डूब गया!
दूसरा बंद पढकर मैथिली शरण गुप्त जी की ये पंक्तियां याद आई
नाक का मोती अधर की कांति से
बीज दाड़िम का समझ कर भ्रांति से
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है
पूछता है अन्य शुक यह कौन है।
तीसरा बंद पढकर यह गा रहा हूं
मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा
तस्वीर भी लजवाब लगई है।
गोल-गोल जन्दा जैसी,
नथनी की शोभा न्यारी है!
गोरी के मुखड़े की यह छवि,
मनमोहक प्यारी है!!
--
रवि ने रविमन पर प्यारा सा,
गीत मधुर टाँका है!
मानों इन्द्रधनुष नभ के,
आँचल में से झाँका है!!
lyrical presentation of lyrical moments.
सिद्धेश्वर जी की टिप्पणी का हिंदी अनुवाद -
गेय पलों का गेय प्रस्तुतीकरण!
गीत सुनकर [पढ़कर]मजा आ गया रवि जी,आपने नथनी की महत्ता तो बढ़ायी ही गोरी की लोरी का भी जवाब नहीं
मुबारका
अच्छा सौन्दर्यबोध ...सहज प्रस्तुति..बधाई.
बहुत सुन्दर गीत !
kya bat hai ...pyaar bhare palon ko badi khubsurati se likh diya hai aap ne
बहुत अच्छी रचना
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