गरीब : लघुकथा : रावेंद्रकुमार रवि
>> Wednesday, June 29, 2011
गरीब
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‘‘भइ, ईमानदारी की भी हद हो गई !’’ - इंसपेक्टर साहब हैट उतारते हुए अपनी पत्नी से बोले ।
पत्नी ने उत्सुक होकर पूछा - ‘‘क्यों, क्या हुआ ?’’
‘‘आज एक ठेलेवाला आया था, थाने में ।’’
‘‘तो ?’’
‘‘तो क्या, मूर्ख कहीं का ! पूरे दस हज़ार की गड्डी जमा कर गया ।’’
‘‘अच्छा ।’’
‘‘हाँ, और बोला कि पड़ी मिली है । मालिक का पता चल जाता, तो उसे दे देता । अपने पास रखूँगा, तो खर्च हो जाएँगे ।’’
‘‘और आप इन्हें घर ले आए । बहुत अच्छी बात है न ! अब क्या इन्हें गरीबों में बँटवाने का इरादा है ?’’ - पत्नी ने उन पर व्यंग्य कसा ।
लेकिन वे उसकी बात का बुरा न मानते हुए बोले - ‘‘तुम भी न ... ... पूरी बुद्धू हो ... ... अरे, हम कौन से धन्ना सेठ हैं । हम भी तो गरीब ही हैं । जाओ, तिजोरी में सँभालकर रख दो । काम आएँगे ।’’
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रावेंद्रकुमार रवि
5 टिप्पणियाँ:
बज़ से indu puri goswami ने कहा –
बहुत सालो पहले टाकीज में पास की सीट पर एक पर्स मिला उसमे उस जमाने में पांच -छ सौ रूपये और आई कार्ड था. मैंने पर्स क्लास फेलो को दिया और कहा 'ये लड़का अपने ही कोलेज में पढता है,उसे दे देना'
पर्स उस लडके तक पहुँच गया आई कार्ड सहित.रूपये दीपक ने दोस्तों के साथ पार्टी में उड़ा दिए थे.
रूपये हाथ में आने के बाद अपने लालच पर अंकुश रख पाना इतना सहज नही.
अच्छी कहानी है.अधिकाँश का सच है ये. 29 Jun 2011
सच की बानगी कहानी.....
अरे, हम कौन से धन्ना सेठ हैं । हम भी तो गरीब ही हैं । जाओ, तिजोरी में सँभालकर रख दो । काम आएँगे।
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आज के हालातों में बहुत सटीक लघुकथा लगाई है आपने!
यह समाज की मानसिकता दर्शाती लघुकथा है। आज हमारा नैतिक स्तर इतना गिर चुका है कि हम इंसान कहलाने लायक़ नहीं रह गे।
Buzz से girish pankaj ने कहा –
achchhi laghukatha..ise apni patrika ''sadbhavana darpan'' me bhi sthan doongaa. isi tarah likhate rahe..badhai. 29 Jun 2011
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