ले हाथों में हाथ : रावेंद्रकुमार रवि
>> Saturday, May 8, 2010
ले हाथों में हाथ
पका हुआ जब पेड़ से,
चुआ रसीला आम।
झट से मैंने लिख दिया,
उस पर अपना नाम।।
ख़ूब पसीना बह रहा,
बनकर सबका मित्र।
ख़ुशबू इसकी लग रही,
जैसे महके इत्र।।
पूरी दोपहरी रहे,
गरमी से हम पस्त।
शाम सुहानी हो गई,
हवा चली जब मस्त।।
मन करता है छाँव के,
सदा रहूँ मैं साथ।
ऐसे ही बैठा रहूँ,
ले हाथों में हाथ।।
रावेंद्रकुमार रवि
8 टिप्पणियाँ:
फलॊं का राजा आम मेरा सबसे पसंदीदा फल है। घर (गांव में) पर तो आम के पेड़ पर ही चढ कर पके आम तोड़ता और खाता रहा हूँ। पर इस महा नगरीय जीवन में कार्बाइड के पके आमों से संतोष कर लेना पड़ता है। हां कोलकाता के हीम सागर आम का जवाब नहीं और आम पर कविता हो और मैं छोड़ दूँ … ऐसा हो नहीं सकता। रवि जी आपकी इस कविता का जवाब नहीं।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 09.05.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/
bahut khoob...
बिलकुल आमो के रस की तरह से लगी आप की यह कविता बहुत मिठ्ठी
सुन्दर दोहे, मन को मोहे!
मातृ-दिवस की बहुत-बहुत बधाई!
ममतामयी माँ को प्रणाम!
बहुत सुंदर ....रचना....
रसीले आम की तरह रसीली रचना....खूबसूरत
बहुत बढ़िया !
Post a Comment