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आँखों में उसकी : नवगीत : रावेंद्रकुमार रवि

>> Saturday, May 21, 2011

आँखों में उसकी


जियरा मचल-मचल गाए, ज्यों
नदिया में पतवार!
प्यार की पड़ने लगी फुहार!
प्यार की ... ... .

मेंहदी रचे हाथ को कसकर
पहली-पहली बार,
क्वाँरे हाथों में पहनाए
ज्यों चूड़ी मनिहार,
वैसे ही सज जाए मन में
चाहत का सिंगार!
प्यार की ... ... .

खिली, अधखिली कली देखकर
मन ही मन मुस्काए,
उसकी छवि की हँसी देखकर
गुन-गुनकर कुछ गाए,
आँखों में उसकी वसंत का
हो जाए दीदार!
प्यार की ... ... .

रावेंद्रकुमार रवि

7 टिप्पणियाँ:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' May 21, 2011 at 9:41 PM  

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

Sunil Kumar May 22, 2011 at 7:30 AM  

बहुत सुंदर प्रेममयी गीत अच्छा लगा , बधाई

डॉ. मोनिका शर्मा May 22, 2011 at 11:49 PM  

बहुत सुन्दर नवगीत
...

वाणी गीत May 24, 2011 at 6:44 AM  

श्रृंगार रस से ओत प्रोत सुन्दर गीत !

सदा May 24, 2011 at 11:27 AM  

बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने ।

Satish Saxena May 26, 2011 at 9:17 PM  

बड़ा प्यारा अंदाज़ है इस रचना में ...आनंद आ गया रवि जी !

प्रोफाइल में आप अपने वेब पेज का लिंक ठीक करें ....शुभकामनायें !!

रविकर June 1, 2012 at 9:44 AM  

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