खिल रहा है कमल : नवगीत : रावेंद्रकुमार रवि
>> Saturday, May 28, 2011
खिल रहा है कमल
शाम है अनमनी,
किंतु आशा नवल!
चाँदनी में धवल, खिल रहा है कमल!
कर रहा है सुस्वागत,
मधुर रात का!
रात में हो रही, हर
मधुर बात का!
भोर में मिल सकेगी ख़ुशी अब नवल!
फब रही है खिलन,
मेह में झूमकर!
मन हुआ है मगन,
नेह में डूबकर!
मेल का खेल है, पाँव रखना सँभल!
रावेंद्रकुमार रवि
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5 टिप्पणियाँ:
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने अपने ललित निबंध
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महाकवि माघ का प्रभात वर्णन!
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में स्पष्ट लिखा है -
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जब कमल शोभित होते हैं, तब कुमुद नहीं, और जब कुमुद शोभित होते हैं तब कमल नहीं। दोनों की दशा बहुधा एक सी नहीं रहती। परन्तु इस समय, प्रातःकाल, दोनों में तुल्यता देखी जाती है। कुमुद बन्द होने को है; पर अभी पूरे बन्द नहीं हुए। उधर कमल खिलने को है, पर अभी पूरे खिले नहीं। एक की शोभा आधी ही रह गयी है, और दूसरे को आधी ही प्राप्त हुई है। रहे भ्रमर, सो अभी दोनों ही पर मंडरा रहे हैं और गुंजा रव के बहाने दोनों ही के प्रशंसा के गीत से गा रहे हैं। इसी से, इस समय कुमुद और कमल, दोनों ही समता को प्राप्त हो रहे हैं।
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हो सकता है कि यह फूल कुमुद का हो,
जिसे कमल समझकर मेंने यह गीत रचा!
आज सारा भ्रम दूर हो गया!
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यह फूल कमल का नहीं है, कुमुद का है!
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अँधेरा होने के कुछ देर पहले
हमें यह कली के रूप में मिला!
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अँधेरा होने तक लगभग २० मिनट में
यह पूरा खिल गया!
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डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक के साथ
मैंने इस अनोखी प्राकृतिक घटना के
५० फ़ोटो खींचे!
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जल्दी ही इन्हें फ़ोटो-फ़ीचर के रूप में
सरस पायस पर प्रकाशित किया जाएगा!
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अब आप इस गीत को
खिल रहा है कुमुद
करके भी गा सकते हैं!
पंक में खिला कमल,
किन्तु है अमल-नवल!
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नवगीत ने मन मोह लिया!
.सुन्दर नवगीत . आपकी शैली अलग ही है .सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई . बाल मंदिर में काका जी को देखिए - http://baal-mandir.blogspot.com/
बहुत सुंदर नवगीत....फोटो का इंतजार रहेगा...
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