जब भी मन करता है : प्रणय कविता : रावेंद्रकुमार रवि
>> Monday, December 5, 2011
जब भी मन करता है
तुम मुझे
अपनी तरफ देखता देखकर
अक्सर अपना मुँह
घुमा लेती हो!
क्या तुम जानती हो
कि मैं भी
चाहता हूँ
कि तुम ऐसा ही करो!
और चाहता हूँ
कि तुम यह कभी न जान पाओ
कि तुम मुझे साइड से
ज़्यादा सुंदर लगती हो!
क्योंकि मेरा दिल
तुम्हारे ख़ूबसूरत कान में सजे
झुमके में बैठकर
झूला झूलने लगता है!
और जब भी
मन करता है
प्यार से महकते हुए
तुम्हारे गालों को चूम लेता है!
रावेंद्रकुमार रवि
7 टिप्पणियाँ:
सुंदर भाव...
बड़े सहज, उदार
और कृपण भी हो तुम।
कविता सम्मोहक है.
यह रचना वाकई मे फूल से भी कोमल भावों से परिपूर्ण है!
रवि जी!
आपकी प्रणय कविता की चर्चा तो आज के चर्चा मंच पर भी है!
बना रहे यह प्रेम और उसे व्यक्त करने का मौन!
pyar ko abhivyakt karne ka sundar andaz..
Welcome to मिश्री की डली ज़िंदगी हो चली
Post a Comment