नन्हे दोस्तों को समर्पित मेरा ब्लॉग

कविता : तुम्हारी ख़ुशी के लिए : रावेंद्रकुमार रवि

>> Sunday, August 2, 2015

 तुम्हारी ख़ुशी के लिए
मेरे दोस्त!
मैं मुस्कराता हूँ!
क्योंकि मैं रोज़ तुम्हारे सपनों में आता हूँ!

तुम्हारी ख़ुशी के लिए
अपनी ख़ुशियाँ भूल जाता हूँ!
तुम्हें कर सकूँ
अपना बहुत कुछ समर्पित,
इसलिए अपने लिए
बस ज़रा-सा बचाता हूँ!

मेरे दोस्त
मैं गुदगुदाता हूँ!
क्योंकि मैं अपने मन में तुम्हारी मुस्कराहट सजाता हूँ!

तुम्हारे सपने सजाने के लिए
अपने सपनों को छुपाता हूँ!
मेरा मन अकेले में
जो कुछ भी रचता है,
उसमें भरकर नेह के सुर
सब तुम्हें ही सुनाता हूँ!

मेरे दोस्त!
मैं गुनगुनाता हूँ!
क्योंकि मैं तुम्हारी साँसों में अपनी ही ख़ुशबू पाता हूँ!

--- रावेंद्रकुमार रवि ---

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कविता : इसीलिए तुम भी उदास हो : रावेंद्रकुमार रवि

>> Sunday, November 3, 2013

इसीलिए तुम भी उदास हो

रावेंद्रकुमार रवि


पहले तुम जब भी आती थीं,
ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ लाती थीं!
पहले तुम जब भी जाती थीं,
ख़ुशियाँ ही देकर जाती थीं!

लेकिन अब तुम जब आती हो,
ख़ुशियाँ कहीं छुपा आती हो!
लेकिन अब तुम जब जाती हो,
ख़ुशियाँ कहीं छुपा जाती हो!

मैं चाहूँ तुम जब भी आओ,
ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ ले आओ!
मैं चाहूँ तुम जब भी जाओ,
ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ दे जाओ!

लेकिन तुमने ख़ुशियोंवाली,
बात नहीं करने की ठानी!
मेरे मन की बात सुनी ना,
बस अपने ही मन की मानी!

आज तुम्हारे मैं न पास हूँ,
तुम भी मेरे नहीं पास हो!
इसीलिए मैं भी उदास हूँ,
इसीलिए तुम भी उदास हो!


रावेंद्रकुमार रवि

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मंदिर है मन : प्रणय कविता : रावेंद्रकुमार रवि

>> Saturday, January 14, 2012


मंदिर है मन 


सोलह शृंगार तुम्हारे 
महकता सुमन! 
तभी तो अभी तक - 
मंदिर है मन!


रावेंद्रकुमार रवि

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जब भी मन करता है : प्रणय कविता : रावेंद्रकुमार रवि

>> Monday, December 5, 2011


जब भी मन करता है
तुम मुझे
अपनी तरफ देखता देखकर
अक्सर अपना मुँह
घुमा लेती हो!

क्या तुम जानती हो
कि मैं भी
चाहता हूँ
कि तुम ऐसा ही करो!

और चाहता हूँ
कि तुम यह कभी न जान पाओ
कि तुम मुझे साइड से
ज़्यादा सुंदर लगती हो!

क्योंकि मेरा दिल
तुम्हारे ख़ूबसूरत कान में सजे
झुमके में बैठकर
झूला झूलने लगता है!

और जब भी
मन करता है
प्यार से महकते हुए
तुम्हारे गालों को चूम लेता है! 

रावेंद्रकुमार रवि

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दीपक-बाती झूम रहे हैं : कविता : रावेंद्रकुमार रवि

>> Friday, October 21, 2011

दीपक-बाती  झूम रहे हैं


गीत सुनाते 
चहकें हिलमिल
बच्चे घर के आँगन में!
ज्यों चहकें 
सतरंगे बादल
नीलगगन में सावन में!

सबके ओठों 
पर बिखरी
हैं खीलों-सी मुस्कानें!
और सजी हैं 
आँखों में
सपनों की मधुर दुकानें!

दीपक-बाती 
झूम रहे हैं
बँधे प्रेम के बंधन में!
किलक रहीं 
फुलझड़ी-सरीखी
झिलमिल ख़ुशियाँ हर मन में !

रावेंद्रकुमार रवि

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दूरभाष : नई कविता : रावेंद्रकुमार रवि

>> Sunday, July 17, 2011

दूरभाष


हैलो, सागर!

मैं वर्षा बोल रही हूँ!
मैं संध्या के साथ
आ रही हूँ,
तुमसे मिलने!

वसुधा से कहना
वह प्रतीक्षा न करे!
आकाश उससे
कभी नहीं मिलेगा!

वैसे
समीर के हाथों
मैंने संदेश भेज दिया है
नीरद व्याकुल है
उससे मिलने के लिए
गिरीश के लिए!

रावेंद्रकुमार रवि 

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नियति : प्रणय कविता : रावेंद्रकुमार रवि

>> Monday, July 11, 2011

नियति
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चार आँखें दो हुईं,
क्या हो गया!
स्वप्न की अनुगूँज का
आभास तक बिसरा गया!

करती रही मनुहार पायल,
भीजती देहरी रही!
बढ़ते रहे दो पाँव लेकिन,
दृष्टि लादे पीठ पर!

राह पर जीवन की तो
बढ़ना ही होगा,
पीठ पर हो दृष्टि
या हृदय हाथ पर!

रावेंद्रकुमार रवि

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